मां, खुशियों की चलती-फिरती दुकान है।
मां की मुसकान मिटा देती थकान है।
मां बताती है मंजिल,
देती सपनों को उड़ान है।
मां में है गीता का सार,
मां में ही खुदा का अजान है।
मां धरती समान धरती धैर्य,
मुसीबत में बन जाती
वीरांगना,
दिखा देती वीरता और शौर्य।
वह है सबसे धनी,
जिसपर मां होती मेहरवान है,
मां, खुशियों की चलती-फिरती दुकान है।
मां बच्चों का रास्ता करती आसान है,
उसे बनाती सच्चा इंसन है,
जो न समझे इसकी महत्ता,
वो पढ़कर भी नादान है,
मां, खुशियों की चलती-फिरती दुकान है।
टल जाएगी बाधाएं,
खुदा भी देगा साथ,
गर सर पर रहे मां का हाथ।
बच्चों के लिए जीती,
उसी के लिए मरती,
दिनभर घिसती- पिटती,
छिपा लेती दर्द को,
न बताती, थकान है,
मां, खुशियों की चलती-फिरती दुकान है।
बच्चा उसका फले-फूले,
सफलता के गगन को छू ले,
यही उसका अरमान है,
मां, खुशियों की चलती-फिरती दुकान है।
बनो बुढ़ापे की लाठी,
मत भेजो वृद्धाश्रम,
उसका भी स्वाभिमान है,
मां, खुशियों की चलती-फिरती दुकान है।
[1/6, 11:08 PM] Manoj Pandey: *मां*
मां, खुशियों की चलती-फिरती दुकान है।
मां की मुसकान मिटा देती थकान है।
मां बताती है मंजिल,
देती सपनों को उड़ान है।
मां में है गीता का सार,
मां में ही खुदा का अजान है।
मां धरती समान धरती धैर्य,
मुसीबत में बन जाती
वीरांगना,
दिखा देती वीरता और शौर्य।
वह है सबसे धनी,
जिसपर मां होती मेहरवान है,
मां, खुशियों की चलती-फिरती दुकान है।
मां बच्चों का रास्ता करती आसान है,
उसे बनाती सच्चा इंसान है,
जो न समझे इनकी महत्ता,
वो पढ़कर भी नादान है,
मां, खुशियों की चलती-फिरती दुकान है।
टल जाएगी बाधाएं,
खुदा भी देगा साथ,
गर सर पर रहे मां का हाथ।
बच्चों के लिए जीती,
उसी के लिए मरती,
दिनभर घिसती- पिटती,
छिपा लेती दर्द को,
न बताती, थकान है,
मां, खुशियों की चलती-फिरती दुकान है।
बच्चा उसका फले-फूले,
सफलता के गगन को छू ले,
यही उसका अरमान है,
मां, खुशियों की चलती-फिरती दुकान है।
बनो बुढ़ापे की लाठी,
मत भेजो वृद्धाश्रम,
उसका भी स्वाभिमान है,
मां, खुशियों की चलती-फिरती दुकान है।
*मनोज कुमार पांडेय*