संस्कार और संस्कृति की भाषा हिंदी

September 26, 2024

जिस प्रकार गंगा सभी नदियों की जल धारा को साथ लेकर समुद्र में जा मिलती हैं, ठीक उसी प्रकार सभी भारतीय भाषाओं को साथ लेकर चलने वाली हिन्दी है। हिन्दी का विकास अर्थात् सम्पूर्ण भारतीय भाषा का विकास है। इस बात की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए भारतेन्दु हरिश्चंद्र कहते हैं–

“निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल। बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल ।”

सितम्बर माह के आते ही सरकारी, गैर सरकारी संस्थानों में हिन्दी दिवस मनाना आरंभ हो जाता है और पूरे माह तक चलता रहता है। इस अवसर पर हिन्दी की खूब महिमा गायी जाती हैं। वहीं प्रशासनिक स्तर पर बड़ी-बड़ी घोषणाएँ भी की जाती हैं, परन्तु हकीकत में हिन्दी को जो स्थान मिलना चाहिए था वह नहीं मिल पाया है। इसके पीछे भाषायी राजनीति है दूसरा कुछ नहीं। तथापि हिन्दी अभिमन्यु की भाँति डटे रहने वाली भाषा है। भारत वर्ष पर जब विदेशी शासकों ने राज करना आरंभ किया तो उन्होंने यहाँ की भाषा-संस्कृति को मिटाने व अपनी भाषा- संस्कृति को थोपने का प्रयास किया। कुछ हद तक सफल भी हुए, जिसका दंश आज तक झेल रहे हैं। यह एक कटु सत्य है कि हिन्दी के बल पर मान-सम्मान और पैसा कमाने वाले लोग सार्वजनिक स्थलों पर हिन्दी बोलने से कतराते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण हिन्दी का सिनेमा जगत् है। वर्तमान समय में हिन्दी के विकास में सबसे बड़ी भूमिका निभा रही हैं गीताप्रेस, गोरखपुर। वहाँ से प्रकाशित सभी हिन्दी की पुस्तकें त्रुटि रहित होती हैं। इसका सबसे बड़ा प्रमाण’ कल्याण पत्रिका है। भारतीय संस्कृतिक और संस्कार के संरक्षण में हिन्दी भाषा की भूमिका अविस्मरणीय है। साथ ही सनातन साहित्य को जनप्रिय बनाने में भी हिन्दी की विशेष भूमिका रही है। हिन्दी भाषा में कुछ ऐसे भी कवि हुए हैं, जो अपनी रचनात्मक प्रतिभा से हिन्दी को अमरत्व प्रदान किये हैं। उनमें सबसे पहला नाम गोस्वामी तुलसीदास का आता है। इस संबंध में आचार्य चतुर्थ शास्त्री का यह कथन सौलह आना सच लगता है –” काल पाकर भाषाएँ टूट-फूट कर विकृत हो जाया करती है, पर जब कभी हिन्दी पर यह संकट आयेगा तो तुलसी की भाषा उसे अखंडित रखने में बहुत सहायक होगी।” हिन्दी के दो ऐसे रचनाकार हुए हैं, जिन्हें पूरा विश्व जानता है और वे हैं– तुलसी और प्रेमचंद।

हिन्दी भाषा में संस्कार, संयम और सौहार्द है। इसमें अपनापन का भाव है। भारत में दस हिन्दी भाषी राज्य हैं। उन दस हिन्दी भाषी राज्यों में कम से कम हिन्दी पूरी तरह से लागू हो जाती तो इसका स्वरूप कुछ और होता। हिन्दी भाषी राज्यों के क्षेत्रीय भाषाओं के विकास में भी हिन्दी की बड़ी भूमिका रही है। यदि हम झारखण्ड में मान्यता प्राप्त नौ जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं के विकास की बात करें तो हम पायेंगे कि इन नौ भाषाओं के विकास में भी हिन्दी की भूमिका को कभी भुलाया नहीं जा सकता है।

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी कहा करते थे, अगर हम भारत को राष्ट्र बनाना चाहते हैं, तो हिन्दी ही हमारी राष्ट्रभाषा हो सकती है, परन्तु स्थिति हम सब के सामने है। हमें” एक राष्ट्र, एक भाषा” का संकल्प लेना होगा, तभी भाषाई विद्वेष कुछ कम होगा और हिन्दी राजरानी बनेंगी।

हिन्दी आज जिस मुकाम पर है उसमें उसकी निजी शक्ति और सामर्थ्य है। किसी की सहानुभूति नहीं है, जबकि हिन्दी और हिन्दीयत को कमजोर करने का षड्यंत्र भी चल रहा है। हिन्दी में एक ओर मीरा की भक्ति है, तो दूसरी ओर रहीम की नीति। वहीं हिन्दी में कृष्ण की मुरली का सुमधुर स्वर है, तो अर्जुन के गांडीव का भीषण टंकार भी। हिन्दी रुपी उपवन की रक्षा के लिए सहस्र सैनिक रुपी रचनाकार प्रतिबद्ध हैं।