अपने सहकर्मी सुबोध चंद्र झा को समर्पित

February 12, 2024

न जाने कहाँ खो गया
कल तक हंसता मुस्कुराता था,
आज चिर निद्रा में सो गया,
न जाने कहाँ वो खो गया!
जलाकर दिलों में उम्मीदों का चिराग,
गमो के सागर में डुबो गया,
न जाने कहाँ वो खो गया!
उम्र कोई खास नहीं,
यही कोई चौवन या पचपन,
उनके दिल के किसी कोने में,
मानो आज भी था बचपन,
मगर अचानक सबों को,
आंसुओं से भिंगो गया,
न जाने कहाँ वो खो गया!
हमारा साथ न निभाना,
इस तरह छोड़कर चले जाना,
बहुत खलता है,
पल-पल आंसुओं का सैलाब उबलता है,
सुनकर उनके जाने की खबर,
मैं स्तब्ध हो गया!
न जाने वो कहाँ खो गया।