किसानों-मजदूरों की आवाज थे ‘खीरुराम विद्रोही’
सैकड़ो कविताएं नहीं हो सकीं प्रकाशित
व्यवस्था से विद्रोह का नाम था खीरुराम विद्रोही
झुमरी तिलैया। राज्य भर में जन कवि के नाम से चर्चित खीरु राम विद्रोही किसानों और मजदूरों की आवाज थे। रेलवे से रिटायर्ड और मस्ती में जीवन व्यतीत करनेवाले जन कवि खीरुराम विद्रोही की सैकड़ो कविताएं आज तक प्रकाशित नहीं हो सकीं। किसानों-मजदूरों और आम आवाम की आवाज बननेवाले विद्रोही की आवाज तामझाम वाली दुनिया के लोग नहीं सुन सके। व्यवस्था से विद्रोह का दूसरा नाम था खीरुराम विद्रोही। सामाजिक व्यवस्था हो, राजनीतिक व्यवस्था या फिर प्रशासनिक इनके खिलाफ अपनी कविताओं से आवाज बुलंद करते रहे। किसानों की बेवसी, मजदूरों की पीड़ा और व्यवस्था से त्रस्त आम आवाम के दर्द को अपनी रचनाओं में उन्होंने स्थान दिया। किसानों की दशा को बयां करती उनके कविता की चंद पंक्तियां लोगों को सोचने पर विवश कर देती हैं। वे किसानों से पूछते हैं-
मैं तुमसे पूछूं एक सवाल
क्यों है तेरा हाल बेहाल ?
क्यों पेट तुम्हारे सटे हुए,
क्यों पिचके-पिचके तेरे गाल ?
तेरे ही परिश्रम से खेतों में अन्न मुसकाते हैं,
तेरे ही परिश्रम से करोड़ो जीवन पाते हैं,
तुम हो दुनिया के अन्न्दाता,
और तुम्हीं हाथ फैलाते हो !
तो दूसरी ओर गरीबी का दंश झेलनेवालों की पीड़ा को भी उन्होंने आवाज दी है। उन माताओं के दर्द को बयां किया हैं जिनके स्तन में बच्चे के लिए दूध नहीं उतरता। बच्चा रो-रोकर सो जाता है। खीरुराम कहते हैं कि-
माटी का घर मरघट जैसा, सूना-सूना आंगन है,
यहां बरसते निस दिन नैना, यहां रोज ही सावन है।
अभी-अभी सावन बरसा था, नन्हें शिशु की आंखों से,
रोते-रोते सो गया वह, दिन-रात के फांकों से।
दूध नहीं मां के स्तन में, केवल भींगा दामन है,
यहां बरसते निस दिन नैना, यहां रोज ही सावन है।।
किसानों-मजदूरों के हितैसी और सामाजिक समरसता का पैगाम देनेवाले खीरुराम विद्रोही ने 13 जनवरी को दुनिया को अलविदा कह दिया।
प्रस्तुति: मनोज कुमार पांडेय