कोरोना काले
मैं मजदूर हूँ
किसी को नहीं मेरी चिंता,
राह में ही जल रही चिता,
ट्रेन की पटरी पर कट जाता,
कभी सड़कों पर आता-जाता,
कभी पुलिस की लाठी खाता,
मेरे लिए नहीं कोई साधन,
मंजिल तक पहुँचने की चाह में,
पैदल चलने को मजबूर हूँ,
क्योंकि मैं मजदूर हूँ।
अगणित बार धरा को स्वर्ग बनाया मैंने,
जनहित में गंगा को धरा पर लाया मैंने,
फिर भी सुविधाओं से दूर हूँ,
क्योंकि मैं मजदूर हूँ।
दूसरों के लिए घर बनाए मैंने,
उजड़ी बस्तियों को बसाए मैंने,
फिर भी खुले आसमान में रहने को मजबूर हूँ,
क्योकि मैं मजदूर हूँ।
मन में लिए यह अरमान,
अपना भी हो एक मकान,
महानगरों का किया प्रयाण,
मैंने ही अपने श्रमजल से
किया सारे जग का कल्याण,
कंधे पर बच्चों का बोझ ढोते,
पैदल चलते थककर चूर हूँ।
क्योकि मैं मजदूर हूँ।
दिल्ली दिल की नहीं सुनती,
बॉम्बे बात नहीं माने,
चेन्नई में भी नहीं चैन है,
कोलकाता में सेफ नहीं कल,
अपने घर लौटने को मजबूर हूँ,
क्योंकि मैं मजदूर हूँ।